एक बार राजा मिलिंद भिक्षु के पास गए ।

भिक्षु का नाम नागसेन था ।

राजा ने भिक्षु से पूछा-महाराज एक बात बताइए, (आप कहते हैं कि हमारा व्यक्तित्व स्थिर नहीं है ।

जीव स्वयंमेव कूछ नहीं है, तो फिर जपै आपका नाम नागसेन है यह नागसेन कोन है? यया सिर के बाल नागसेन है?

भिक्षु ने कहा- ऐसा नहीं है ।

राजा ने फिर पूछा … यया ये सारा, मस्तिष्क, मारा आदि नागसेन है?

भिक्षु ने यत-हा-नहीं ।

राजा ने फिर पूछक्च-फिर साप बताएं क्यक्व आकार, संस्कार, समस्त वेद-नप-एं नागसेन है?

भिक्षु ने बाहा-नहीं ।

राजा ने फिर प्रश्न लिया-यया ये राब वस्तुएं मिलकर नागसेन है? या इनके बाहर कोई ऐसी वस्तु है जो नागसेन है?

भिक्षु ने कहा नहीं ।

अब राजा बोल- तो फिर नागसेन कुछ नहीं है । जिसे हम अपने सामने देखते हैं और नागसेन बहाते हैं वह नागसेन कौन हैं?

अब भिक्षु ने राजा से पूछा? राजन, यया आप पैदल आए है?

राजा ने कहा- नहीं, रथ पर ।

भिक्षु ने पूछऱ-फिर तो साप जरूर जानते होंगे कि रथ क्या है? यया यह पताका रथ है?

राजा ने यन्हा–नहीं ।

भिक्षु बोले- यया ये पहिए या धुरी रथ है?

राजा ने कहा- नहीं ।

भिक्षु ने पूछक्च-क्यऱ ये रस्पिनयां या चाबुक रथ है?

राजा ने कहा नहीं ।

भिक्षु ने पूछा-क्यऱ इन सबके बाहर कोई अन्य चीज है, जिसे हम रथ कहते है?

राजा ने कहर-नहीं ।

भिक्षु ने कहा-त्तो फिर, रथ कुछ नहीं है?

जिसे हम सामने देखते हैं और रथ कहते वह क्यब्जा है?

राजा ने कहा-इन सब चीजों के एक साथ होने पर ही इसे रथ कहा जस्ता है ।

भिक्षु ने बाहा-राजन, इसमें ही आपकी जिज्ञासा का हल लिया है ।

जिस प्रकार इन वस्तुओं कं उचित तालमेल से रट का निर्माण हुआ है, ठीक उसी प्रकार अग्नि, पृथ्वी, आकाश, जल और वायु इन पाँच तत्वों के समुचित संयोजन से बना शरीर ही नागसेन है । इसके
इतिरिक्त कुछ नहीं ।

निष्कर्ष :

किसी वस्तु को सही (प्राकार इसके घटकों कं उचित संयोजन से ही मिलता है । इसके बाद ही कोई तत्व अपनी संपूर्णता तक पहुँचता है ।

याद रखें ….. ..

व्यक्तित्व का रनम्बन्ध उन गहराइयों से है जो हमारी चेतना को विकसित करती हैं अर्थात् जो हर क्षण हमारे व्यवहार, (मबधिया और हमारी चेष्टाओं में अभि-त्यात होती रहती है । स्पष्ट है, व्यक्तित्व का केबल व्यक्ति के बाहर गुणा , जैसे – रूप-रग, यत्न-ताल, पहरा”.”, बोलचाल जिप-दि से नहीं है, उसके जि-ति-रिक गुणों से भी है, जैसे- चरित्र-बल, इच्छऱ-इस्नाक्ति, जि-पू-मवादे-शबर, मन दो एकाग्रता जिप-दि । हरन प्रकार व्यक्तित्व का व्यक्ति के बाह्म गुणों” एवं आंतरिक गुणों के छो-ग से है । यथार्थ में (प्रान्त-रिब’ गुणों के विकास से ही आपकं व्यक्तित्व को संपूर्णता प्रदान होती है जिसे कपलीट परर्ननेलिटी मानि उठाने-मि-ब’ परर्ननेलिटी कहते हैं जो किसी भी क्षेत्र में स्थायी सफलता का ग्रगुन्द्र अंग मानी जाती है ।