नकली घी रैकेट: गिरिराज गुप्ता और प्रभुश्री ट्रेडर्स का मामला
इंदौर में खाद्य विभाग ने हाल ही में एक बड़ी कार्रवाई करते हुए एक नकली घी निर्माण रैकेट का भंडाफोड़ किया है। यह मामला गिरिराज गुप्ता नामक व्यक्ति से जुड़ा है, जो प्रभुश्री ट्रेडर्स के नाम से व्यवसाय चलाता था और बड़े पैमाने पर मिलावटी घी का उत्पादन कर रहा था।
मामले की विस्तृत जानकारी
अक्टूबर 2025 के अंतिम सप्ताह में, इंदौर जिला प्रशासन और खाद्य एवं औषधि विभाग की संयुक्त टीम ने कलेक्टर शिवम वर्मा के निर्देशन में पल्हर नगर स्थित 60 फीट रोड पर एक मकान पर छापा मारा। यह मकान गिरिराज गुप्ता का था, जो मल्हारगंज क्षेत्र में प्रभुश्री ट्रेडर्स के नाम से दुकान संचालित करता था।[1][2][3]
छापेमारी के दौरान अधिकारियों को चौंकाने वाली खोज हुई। परिसर में भारी मात्रा में वनस्पति तेल, एसेंस और तैयार मिलावटी घी मिला। सबसे चिंताजनक बात यह थी कि मौके से सांची, अमूल, नोवा और मालवा जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड के रैपर और आउटर कवर बड़ी संख्या में बरामद हुए। आरोपी इन रैपर का इस्तेमाल वनस्पति तेल और एसेंस से बनाए गए मिलावटी घी को पैक करने के लिए करता था।[2][4][1]
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने कुल 27 डिब्बे वनस्पति, 13 डिब्बे तेल, 3 डिब्बे घी, 5 बोतल एसेंस और लगभग 350 रैपर जब्त किए। घी, तेल और एसेंस के 6 नमूने जांच के लिए भोपाल स्थित राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला में भेजे गए। कुल मिलाकर लगभग 600 लीटर मिलावटी घी और तेल जब्त किया गया।[3][4][1][2]
मिलावट की विधि
जांच से पता चला कि गिरिराज गुप्ता एक सुनियोजित तरीके से नकली घी का निर्माण कर रहा था। वह वनस्पति तेल (हाइड्रोजनेटेड वेजिटेबल ऑयल), रिफाइंड तेल और कृत्रिम घी के एसेंस को मिलाकर नकली घी तैयार करता था। इस मिश्रण को देखने और महकने में असली घी जैसा बनाने के लिए कृत्रिम सुगंध और रंग का उपयोग किया जाता था।[4][1][2]
खाद्य अधिकारी मनीष स्वामी ने बताया कि निर्माण परिसर को सील कर दिया गया है। यूनिट में घी को सांची, अमूल, नोवा और मालवा के नकली लेबल के तहत उत्पादन और पैकिंग की जा रही थी। यह घी बिना किसी अधिकार के लोकप्रिय ब्रांडों के नाम पर बेचा जा रहा था, जो खाद्य सुरक्षा मानदंडों का गंभीर उल्लंघन था और उपभोक्ताओं को गुमराह कर रहा था।[2][3][4]
व्यापक अभियान का हिस्सा
यह कार्रवाई मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के हालिया निर्देशों के बाद खाद्य मिलावट के खिलाफ चल रहे व्यापक अभियान का हिस्सा थी। महज एक दिन पहले, 29 अक्टूबर 2025 को, अधिकारियों ने पालदा क्षेत्र में श्रीराम मिल्क एंड फूड डेयरी में छापा मारकर लगभग 3400 लीटर मिलावटी घी जब्त किया था, जिसकी कीमत करीब 17 लाख रुपये थी।[5][6][7]
श्रीराम मिल्क एंड फूड डेयरी के मामले में, जांच से पता चला कि मालिक एक दोहरी रणनीति अपना रहा था – एक फर्म विभिन्न राज्यों से घी खरीदने के लिए और दूसरी फर्म मिलावटी उत्पाद को प्रीमियम ब्रांड के रूप में री-ब्रांड और पैकेज करने के लिए। महाराष्ट्र से डेयरी पावर और कावल्या ब्रांड का घी मंगाया जाता था, फिर उसमें वनस्पति तेल और एसेंस मिलाकर मिल्क क्रीम और अन्य ब्रांड से बेचा जाता था।[6][7][8]
स्वास्थ्य जोखिम
मिलावटी घी का सेवन गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, वनस्पति घी में ट्रांस फैटी एसिड होते हैं, जो हृदय रोग, कैंसर, एलर्जिक प्रतिक्रियाओं और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।[9][10][11][12]
डॉ. राकेश और डॉ. निशांत सिंह, इंटरनल मेडिसिन के वरिष्ठ सलाहकारों के अनुसार, मिलावटी घी के सेवन से तुरंत पाचन संबंधी समस्याएं जैसे सूजन, मतली और अपच हो सकते हैं। इसके अलावा, लगातार सेवन से लीवर को नुकसान, हृदय रोग, एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) के स्तर में वृद्धि, और संभावित रूप से कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।[10][13][9]
हाइड्रोजनेटेड वनस्पति तेल में ट्रांस फैट होते हैं, जो एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) को बढ़ाते हैं और एचडीएल (अच्छे कोलेस्ट्रॉल) को कम करते हैं, जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, इन मिलावटी उत्पादों में मौजूद रसायन और संरक्षक शरीर में विषाक्त पदार्थों का निर्माण कर सकते हैं, जो लीवर और किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।[11][14][10]
राष्ट्रीय समस्या
गिरिराज गुप्ता का मामला भारत में घी मिलावट की एक बड़ी समस्या को उजागर करता है। भारत भर में इसी तरह के कई मामले सामने आए हैं। 2024 में, इंडिया टुडे की एक जांच में हाथरस, उत्तर प्रदेश में एक विक्रेता का पर्दाफाश हुआ, जो 240 रुपये प्रति किलोग्राम में नकली घी बेच रहा था, जबकि ब्रांडेड देसी घी की कीमत 600 रुपये से अधिक होती है। यह घी हाइड्रोजनेटेड वेजिटेबल ऑयल, रिफाइंड ऑयल और देसी घी के एसेंस का मिश्रण था, और इसे अमूल और अन्य प्रतिष्ठित ब्रांडों के नकली कार्टन में पैक किया जा रहा था।[15][16]
जनवरी 2025 में, आगरा में पुलिस ने “श्याम एग्रो” नाम से संचालित एक फैक्टरी का भंडाफोड़ किया, जहां यूरिया, पाम ऑयल और सिंथेटिक एसेंस जैसे खतरनाक तत्वों को मिलाकर नकली घी बनाया जा रहा था। अधिकारियों ने 25,500 किलोग्राम नकली घी जब्त किया। यह घी महज 175 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत से बनाया जा रहा था, लेकिन 650 रुपये प्रति किलोग्राम तक बेचा जा रहा था।[17]
सितंबर 2025 में, दिल्ली पुलिस ने बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक अवैध घी निर्माण इकाई पर छापा मारा और 7,600 लीटर मिलावटी घी और 900 लीटर तेल जब्त किया। गुजरात में भी इसी तरह के मामले सामने आए, जहां सितंबर 2025 में बनासकांठा जिले में 5 टन (5,000 किलोग्राम) नकली घी जब्त किया गया, जिसकी कीमत करीब 35 लाख रुपये थी।[18][19]
सरकारी प्रतिक्रिया और कार्रवाई
मध्य प्रदेश सरकार ने खाद्य मिलावट के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की प्रतिबद्धता जताई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि खाद्य और दवा उत्पादन या बिक्री में मिलावट को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और मिलावट करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।[20][21][22][23]
अक्टूबर 2025 में, मुख्यमंत्री ने इंदौर में तलावली चांदा क्षेत्र में 8.30 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित एक अत्याधुनिक खाद्य और औषधि परीक्षण प्रयोगशाला का उद्घाटन किया। यह प्रदेश की दूसरी ऐसी प्रयोगशाला है और इससे परीक्षण क्षमता 6,000 से बढ़कर 20,000 नमूने प्रति वर्ष हो जाएगी। इससे पहले, सभी नमूने भोपाल भेजने पड़ते थे, जिससे काफी समय की बर्बादी होती थी।[21][22][23][20]
कलेक्टर शिवम वर्मा ने निर्देश दिए हैं कि खाद्य सुरक्षा अधिकारी निरंतर और कड़ी निगरानी बनाए रखें, और इंदौर भर में मिठाई निर्माण इकाइयों, परिवहन वाहनों और डेयरी उत्पाद सुविधाओं में दैनिक आश्चर्यजनक निरीक्षण करें। अधिकारियों ने एक कड़ी चेतावनी जारी की है कि खाद्य मिलावट, गलत ब्रांडिंग या असुरक्षित उत्पाद बेचने में दोषी पाए गए किसी भी व्यक्ति या संस्था को कठोर कानूनी और आपराधिक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।[7][6]
राष्ट्रीय स्तर पर मिलावट की स्थिति
मध्य प्रदेश में खाद्य मिलावट एक गंभीर समस्या है। राज्यसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव के अनुसार, मध्य प्रदेश में औसतन रोजाना सात खाद्य मिलावट के मामले दर्ज किए जाते हैं। यह राज्य उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाद खाद्य सुरक्षा उल्लंघनों के लिए भारत में तीसरे स्थान पर है।[24]
वित्तीय वर्ष 2024-25 में, खाद्य सुरक्षा और मानक (एफएसएस) अधिनियम, 2006 के तहत 13,920 खाद्य नमूनों की जांच की गई, जिनमें से 2,597 मामलों में दंड लगाया गया। यह 2023-24 की तुलना में 659 मामलों की वृद्धि है, जब 13,842 नमूनों पर 1,938 दंड लगाए गए थे।[24]
पिछले पांच वर्षों में, मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाद खाद्य मिलावट के लिए लगाए गए दंडों की संख्या सबसे अधिक रही है। यह आंकड़े इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं और कठोर प्रवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।[24]
कानूनी प्रावधान और दंड
भारत में खाद्य मिलावट को खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (एफएसएसएआई अधिनियम) के तहत नियंत्रित किया जाता है। यह अधिनियम खाद्य पदार्थों के निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को नियंत्रित करता है और खाद्य मिलावट के लिए कड़े दंड का प्रावधान करता है।[25][26][27]
खाद्य मिलावट के विभिन्न प्रकारों के लिए अलग-अलग दंड निर्धारित किए गए हैं। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मिलावट करने वाले पदार्थों का आयात, निर्माण, भंडारण, बिक्री या वितरण करने पर न्यूनतम एक वर्ष की कैद जो छह वर्ष तक बढ़ सकती है और न्यूनतम 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।[27][25]
यदि कोई खाद्य पदार्थ जिसमें जहरीले या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व हैं, जिससे मृत्यु या गंभीर शारीरिक नुकसान हो सकता है, की बिक्री या वितरण किया जाता है, तो न्यूनतम तीन वर्ष की कैद जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है और न्यूनतम 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।[25][27]
असुरक्षित खाद्य पदार्थों के निर्माण या बिक्री के लिए धारा 59 के तहत दंड प्रावधान हैं: यदि कोई चोट नहीं होती है तो 6 महीने तक की कैद और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना; गैर-गंभीर चोट के लिए 1 वर्ष तक की कैद और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना; गंभीर चोट के लिए 6 वर्ष तक की कैद और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना; और मृत्यु के लिए 7 वर्ष से आजीवन कारावास और न्यूनतम 10 लाख रुपये का जुर्माना।[26][27][25]
बिना एफएसएसएआई लाइसेंस के खाद्य व्यवसाय चलाने पर 6 महीने तक की कैद और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।[28][27][25]
एफएसएसएआई मानक और परीक्षण प्रक्रिया
एफएसएसएआई ने ‘मिल्क फैट प्रोडक्ट (घी)’ के लिए मानक निर्धारित किए हैं, जो खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियम, 2011 के उप-विनियम 2.1.8 के तहत आते हैं। इन मानकों में घी की प्रामाणिकता की जांच के लिए फैटी एसिड संरचना का उल्लेख किया गया है।[29][30]
घी में न्यूनतम 99.5% मिल्क फैट होना चाहिए। नमी की मात्रा 0.5% से अधिक नहीं होनी चाहिए। बौडौइन परीक्षण नकारात्मक होना चाहिए – एक सकारात्मक परीक्षण घी में डालडा (हाइड्रोजनेटेड वनस्पति वसा) की उपस्थिति को इंगित करता है।[30][31][29]
खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के अनुसार, खाद्य पदार्थों की जांच एनएबीएल मान्यता प्राप्त या एफएसएसएआई अधिसूचित प्रयोगशाला के माध्यम से हर छह महीने में एक बार आयोजित की जानी चाहिए। खाद्य विश्लेषण के लिए, एक नमूना खाद्य उत्पाद लिया जाता है, पैक किया जाता है, सील किया जाता है, और खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता और सुरक्षा का विश्लेषण करने के लिए एक अधिकृत प्रयोगशाला में भेजा जाता है।[32][33]
उपभोक्ताओं के लिए सुझाव
उपभोक्ताओं को शुद्ध घी खरीदते समय सतर्क रहना चाहिए। कुछ सरल घरेलू परीक्षण हैं जो घी की शुद्धता की जांच करने में मदद कर सकते हैं:
ताप परीक्षण: शुद्ध घी समान रूप से पिघलता है और सुनहरा हो जाता है। मिलावटी घी असमान रूप से पिघलता है और अलग-अलग परतें दिखाई देती हैं। [34][10]
पानी परीक्षण: एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच घी डालें। शुद्ध घी नीचे बैठ जाएगा और एक परत बनाएगा। मिलावटी घी पानी में घुल सकता है या चटकने की आवाज कर सकता है। [10][34]
हथेली परीक्षण: शुद्ध घी शरीर के तापमान पर पिघल जाता है। अपनी हथेली पर थोड़ा घी रगड़ें – अगर यह जल्दी पिघलता है, तो यह शुद्ध होने की संभावना है। [34][10]
उपभोक्ताओं को हमेशा प्रतिष्ठित ब्रांडों से घी खरीदना चाहिए और लेबल और प्रमाणपत्रों को ध्यान से पढ़ना चाहिए। एफएसएसएआई लाइसेंस नंबर की जांच करें और सुनिश्चित करें कि उत्पाद पर सभी आवश्यक जानकारी है। [10][34]
निष्कर्ष
गिरिराज गुप्ता और प्रभुश्री ट्रेडर्स का मामला भारत में व्यापक खाद्य मिलावट की समस्या का एक हिस्सा है। यह मामला दर्शाता है कि कैसे अवैध संचालक लाभ के लिए उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य से समझौता करते हैं। मिलावटी घी न केवल उपभोक्ताओं को धोखा देता है, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा करता है। [1][3][2]
सरकार और खाद्य सुरक्षा अधिकारी इस समस्या से निपटने के लिए कड़े कदम उठा रहे हैं। नई खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना, निरंतर निगरानी, और सख्त दंड प्रावधानों के साथ, अधिकारी खाद्य मिलावट को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। [22][23][20][21]
हालांकि, उपभोक्ताओं को भी सतर्क रहना चाहिए और केवल प्रतिष्ठित स्रोतों से खाद्य उत्पाद खरीदने चाहिए। यदि कोई संदिग्ध उत्पाद मिलता है, तो एफएसएसएआई हेल्पलाइन या फूड सेफ्टी कनेक्ट मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से रिपोर्ट किया जाना चाहिए।[35]
खाद्य सुरक्षा एक सामूहिक जिम्मेदारी है जो सरकार, व्यवसायों और उपभोक्ताओं सभी को साथ मिलकर निभानी होगी। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे भोजन शुद्ध, सुरक्षित और स्वस्थ हों। [6][7][22]
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