राजस्थान: 5 साल में 56,000 से अधिक जातिगत अपराध – न्याय और सामाजिक परिवर्तन का संकट
यह चौंकाने वाला शीर्षक एक भयावह सच्चाई को उजागर करता है – राजस्थान में 2017 से 2023 के बीच अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 56,879 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा केवल एक सांख्यिकीय विसंगति नहीं है, बल्कि एक व्यवस्थित संकट है जो गहरी जड़ें जमा चुकी जातिगत पदानुक्रम और सामंती संरचनाओं को उजागर करता है जो भारत के क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़े राज्य को परेशान कर रही है। आंकड़े बताते हैं कि दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध 2018 से 2022 तक औसतन 22 प्रतिशत की दर से बढ़े हैं, जबकि दोषसिद्धि दर 2020 में 27.49 प्रतिशत से घटकर 2022 में 22.38 प्रतिशत तक पहुंच गई है। newslaundry

Year-wise trend of SC/ST atrocity cases registered in Rajasthan (2017-2023)
हिंसा का स्तर: आंकड़ों को समझना
राजस्थान में जातिगत हिंसा का प्रक्षेपवक्र भेदभाव और अत्याचारों की बढ़ती समस्या की एक परेशान करने वाली तस्वीर प्रस्तुत करता है। 2017 में 4,532 मामलों से शुरू होकर, संख्या नाटकीय रूप से बढ़कर 2022 में 11,540 मामलों के शिखर पर पहुंची और फिर 2023 में घटकर 9,060 मामले हो गए। यह आधारभूत वर्ष से शिखर तक 154.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है, जो न केवल अलग-थलग घटनाओं बल्कि हाशिए के समुदायों के खिलाफ हिंसा के एक व्यवस्थित पैटर्न को इंगित करता है। newslaundryyoutube
राष्ट्रीय स्तर पर, राजस्थान अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों के मामले में सभी भारतीय राज्यों में दूसरे स्थान पर है, 2022 में 8,752 मामले दर्ज करके। यह राष्ट्रव्यापी सभी अनुसूचित जाति अपराधों का 15.2 प्रतिशत है, जो इसे भारत की जातिगत अत्याचार सांख्यिकी में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है। अनुसूचित जनजातियों के लिए, राजस्थान की स्थिति और भी चिंताजनक है, 2,498 मामलों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्थान पर है, जो देश के सभी अनुसूचित जनजाति अपराधों का 24.8 प्रतिशत है। thenewsminute+1

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राज्य की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक लगती है जब हम यह मानते हैं कि 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियां राजस्थान की कुल जनसंख्या का 17.83 प्रतिशत हिस्सा हैं। यह जनसांख्यिकीय संरचना, राज्य के सामंती इतिहास और जड़ जमा चुकी जातिगत पदानुक्रम के साथ मिलकर, एक अस्थिर वातावरण का निर्माण करती है जहां पारंपरिक शक्ति संरचनाएं हाशिए के समुदायों के बीच सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता का विरोध करती हैं। newslaundry
न्याय व्यवस्था में व्यवस्थित विफलताएं
कच्चे आंकड़ों से भी अधिक परेशान करने वाली बात जवाबदेही सुनिश्चित करने में आपराधिक न्याय व्यवस्था की व्यवस्थित विफलता है। 2017-2023 के बीच दर्ज हुए 56,879 जातिगत अपराध मामलों में से, पुलिस ने केवल 26,801 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल की – लगभग 47 प्रतिशत। और भी चिंताजनक बात यह है कि केवल 25,762 मामलों में न्यायालयों में चार्जशीट प्रस्तुत की गईं, जो सभी दर्ज मामलों का केवल 45.3 प्रतिशत है। newslaundry
दोषसिद्धि दरें संस्थागत विफलता की और भी गंभीर तस्वीर पेश करती हैं। राज्य की 36 अनुसूचित जाति/जनजाति विशेष अदालतों ने दोषसिद्धि दरों में 2020 में 27.49 प्रतिशत से 2022 में 22.38 प्रतिशत तक की गिरावट की रिपोर्ट की। दोषसिद्धि में यह गिरावट दर्ज मामलों की बढ़ती प्रवृत्ति के साथ-साथ हो रही है, जो सुझाता है कि न्यायिक मशीनरी न केवल अभिभूत है बल्कि जातिगत अपराधों की जटिलता और मात्रा को संभालने के लिए अपर्याप्त रूप से सुसज्जित भी है। newslaundry
कानूनी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं के अनुसार, कई कारक इन कम दोषसिद्धि दरों में योगदान करते हैं। जयपुर में दलित अधिकार केंद्र के निदेशक सतीश कुमार राज्य अधिवक्ताओं और सरकारी अभियोजकों के बीच महत्वपूर्ण अंतर की व्याख्या करते हैं – पूर्व “राजनीतिक दलों की सिफारिशों के आधार पर चुने जाते हैं और न तो प्रशिक्षित होते हैं और न ही जवाबदेह होते हैं,” जबकि बाद वाले “सरकारी, अनुभवी और प्रतिष्ठित होते हैं”। कानूनी प्रतिनिधित्व में यह असमानता मामले के परिणामों को काफी प्रभावित करती है, 36 विशेष अदालतों में से केवल 9 में नियमित राज्य अधिवक्ता हैं, जबकि शेष 27 अदालतें राज्य कानून विभाग से नामित सरकारी अभियोजकों पर निर्भर हैं। newslaundry
क्षेत्रीय पैटर्न और भौगोलिक वितरण
राजस्थान में जातिगत अपराधों का भौगोलिक वितरण ऐतिहासिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों से जुड़े विशिष्ट पैटर्न को प्रकट करता है। राज्य ने 11 जिलों को अत्याचार प्रवण के रूप में पहचाना है: भरतपुर, श्री गंगानगर, टोंक, अलवर, अजमेर, पाली, बाड़मेर, हनुमानगढ़, सीकर, बारां, और नागौर। ये क्षेत्र विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की विशेषता रखते हैं जो जातिगत हिंसा को बनाए रखती हैं। pib
पश्चिमी राजस्थान में, विशेष रूप से पाली, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, नागौर, भीलवाड़ा, और झुंझुनूं जैसे जिलों में, मुख्य संघर्ष मेघवालों और राजपूतों तथा प्रभावशाली ओबीसी समुदायों के बीच होता है। भूमि विवाद इन संघर्षों को चलाने वाला केंद्रीय मुद्दा उभरता है, जो दलित युवाओं के बीच बढ़ती सामाजिक-राजनीतिक चेतना से और भी बढ़ जाता है जो तेजी से पारंपरिक पदानुक्रमों को चुनौती देते हैं। newslaundry
लेखक और कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी नोट करते हैं कि दक्षिणपश्चिम राजस्थान की तुलना में शेखावाटी क्षेत्र में अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के कम मामले हैं। दक्षिणपूर्वी क्षेत्र भी अपने अलग सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य और छोटी दलित जनसंख्या के कारण कम घटनाओं की रिपोर्ट करते हैं। यह भौगोलिक भिन्नता सुझाती है कि स्थानीय शक्ति गतिशीलता, आर्थिक संरचनाएं, और ऐतिहासिक विरासत जातिगत हिंसा की व्यापकता को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। newslaundry
केस स्टडीज: आंकड़ों के पीछे मानवीय कहानियां
इन आंकड़ों का मानवीय आयाम उन विशिष्ट घटनाओं के माध्यम से स्पष्ट रूप से सामने आता है जिन्होंने राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। नौ वर्षीय इंद्र मेघवाल का मामला, जो जालोर जिले के सुराणा गांव में “ऊंची जातियों” के लिए निर्धारित पानी के बर्तन को छूने के लिए अपने स्कूल शिक्षक द्वारा कथित तौर पर मारपीट के बाद मर गया, अपने सबसे क्रूर रूप में अस्पृश्यता की निरंतर प्रथा का उदाहरण है। newslaundry
शिक्षक, छैल सिंह को इंद्र की मृत्यु के ठीक एक साल बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया, और परिवार न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है। मामला कई व्यवस्थित विफलताओं को उजागर करता है: पुलिस ने अपनी चार्जशीट में इस तथ्य को शामिल नहीं किया कि इंद्र ने बर्तन छुआ था, उसकी चोटों के कारण के बारे में परस्पर विरोधी सिद्धांत प्रस्तुत करते हुए। बचाव पक्ष ने राजस्थान उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त किया, सुनवाई की गति को धीमा करते हुए, और चार्जशीट में नामित 78 गवाहों में से केवल आठ के बयान अदालत में प्रस्तुत किए गए थे। newslaundry
इसी तरह, पाली के बरवा गांव में 28 वर्षीय जितेंद्र मेघवाल की हत्या, कथित तौर पर ऊंची जातियों के समान जीवनशैली की आकांक्षा के लिए दिखाती है कि दलितों के बीच आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता कैसे प्रभावशाली समुदायों से हिंसक प्रतिक्रिया को ट्रिगर करती है। घटना ने पूरे परिवार को अपना पैतृक गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया, और मुआवजे और सरकारी नौकरियों के वादों के बावजूद, डेढ़ साल से अधिक बाद, गिरफ्तारियों को छोड़कर कुछ भी साकार नहीं हुआ है। newslaundry
शेओगंज तहसील के आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता कार्तिक भील का मामला, जिस पर हमला किया गया और बाद में उसकी चोटों से मृत्यु हो गई, राजनीतिक शक्ति गतिशीलता के साथ जातिगत भेदभाव के चौराहे का प्रतिनिधित्व करता है। विवाद भूमि पट्टा दस्तावेजों पर केंद्रित था जिसकी भील परिवार 2000 से मांग कर रहे थे लेकिन अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित नहीं हुए, कथित तौर पर स्थानीय विधायक की जातिगत संबद्धता और आदिवासी समुदायों के खिलाफ पूर्वाग्रह के कारण। newslaundry
जातिगत हिंसा की सामाजिक-आर्थिक जड़ें
राजस्थान में जातिगत हिंसा की निरंतरता और वृद्धि को उन गहरी जड़ों वाली सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं की जांच के बिना समझा नहीं जा सकता जो असमानता और सामाजिक परिवर्तन के प्रतिरोध को बनाए रखती हैं। राजस्थान का सामंती इतिहास, जहां पारंपरिक व्यवसाय सामाजिक समीकरणों से दबे हुए हैं, एक ऐसा वातावरण बनाता है जहां प्रभावशाली जातियां अपनी विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति बनाए रखने के लिए हिंसा का उपयोग करती हैं। newslaundry
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी सत्यवीर सिंह समस्या का कारण “सामंती व्यवस्था” और “शिक्षा की कमी” को मानते हैं जिसने पुलिसिंग को भी प्रभावित किया है। राज्य की अर्थव्यवस्था, जो पर्यटन और खनन पर बहुत अधिक निर्भर है, सामाजिक गतिशीलता के लिए सीमित अवसर प्रदान करती है, जबकि परिवहन की उच्च लागत लोगों के लिए बेहतर अवसरों के लिए अपने पारंपरिक समुदायों को छोड़ना मुश्किल बना देती है। newslaundry
आर्थिक आयाम भूमि स्वामित्व और कृषि संबंधों के संदर्भ में विशेष रूप से स्पष्ट हो जाता है। कई गांवों में, दलित समुदाय वस्तुतः भूमिहीन रहते हैं, रोजगार और अस्तित्व के लिए ऊंची जाति के भूमि मालिकों पर निर्भर रहते हैं। यह आर्थिक निर्भरता एक शक्ति असंतुलन पैदा करती है जिसका फायदा प्रभावशाली समुदाय पारंपरिक पदानुक्रमों को बनाए रखने और हाशिए के समूहों द्वारा दावे या गतिशीलता के किसी भी प्रयास का विरोध करने के लिए उठाते हैं। newslaundry
अस्पृश्यता की प्रथा ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत बनी हुई है, जहां दलितों को मंदिरों, कुओं और अन्य सार्वजनिक स्थानों से रोका जाता है। भारत में सामाजिक दृष्टिकोण अनुसंधान (SARI) के 2018 के सर्वेक्षण ने खुलासा किया कि ग्रामीण राजस्थान में दो-तिहाई जनसंख्या और शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत ने अस्पृश्यता का अभ्यास करने की स्वीकारोक्ति की। भेदभावपूर्ण प्रथाओं की यह व्यापक सामाजिक स्वीकृति एक ऐसा वातावरण बनाती है जहां दलितों और आदिवासियों के खिलाफ हिंसा को अक्सर पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था के वैध प्रवर्तन के रूप में देखा जाता है। rajras+1
सोशल मीडिया की भूमिका और बदलती गतिशीलता
विरोधाभासी रूप से, तकनीकी प्रगति ने जातिगत भेदभाव को संबोधित करने में अवसर और चुनौतियां दोनों पैदा की हैं। सोशल मीडिया ने जातिगत भेदभाव के उदाहरणों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वीडियो को अधिक आसानी से वायरल बनाकर और पुलिस और प्रशासन को मामलों को गंभीरता से लेने पर मजबूर करके। जालोर के दलित पत्रकार दिलीप सोलंकी नोट करते हैं कि “आजकल, पुलिस में मामलों को ले जाने और मामला दर्ज करने के लिए केवल अपराध के वीडियो की आवश्यकता होती है”। newslaundry
इस तकनीकी सशक्तिकरण ने दलित समुदायों को प्रतिरोध और वकालत के लिए नए उपकरण दिए हैं। भीम आर्मी के राज्य प्रभारी अनिल ढेनवाल बताते हैं कि “आज हमारे पास फोन हैं। हम एसपी और डीएम को वीडियो भेज सकते हैं। मेरे पिता और दादाजी में अधिकारियों के पास जाने का आत्मविश्वास नहीं था। एसपी और डीएम तक पहुंचने में सक्षम होने से हमें बहुत साहस मिला है”। newslaundry
हालांकि, सोशल मीडिया एक ऐसे मंच के रूप में भी काम करता है जहां नफरत फैलाने वाली भाषा सबसे तेजी से फैलती है, धार्मिक और अंतर-जातीय तनाव की आग को हवा देती है। डिजिटल तकनीक की यह दोहरी प्रकृति समकालीन भारतीय समाज में व्यापक विरोधाभासों को दर्शाती है, जहां आधुनिकीकरण पारंपरिक पूर्वाग्रहों और शक्ति संरचनाओं के साथ सह-अस्तित्व में है। newslaundry
दलित युवाओं के बीच बेहतर शिक्षा और सूचना तक पहुंच से प्रेरित बढ़ती सामाजिक-राजनीतिक चेतना ने उन्हें पारंपरिक पदानुक्रमों को चुनौती देने और अपने अधिकारों का दावा करने के लिए प्रेरित किया है। यह बढ़ती मुखरता अक्सर ऊंची जाति के समुदायों से हिंसक प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करती है जो ऐसी चुनौतियों को अपने पारंपरिक प्रभुत्व और विशेषाधिकार के लिए खतरे के रूप में देखते हैं। newslaundry
सरकारी प्रतिक्रिया और नीति विफलताएं
संवैधानिक गारंटी और विधायी ढांचे के बावजूद, राजस्थान में जातिगत हिंसा के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया नीति के इरादों और कार्यान्वयन वास्तविकताओं के बीच महत्वपूर्ण अंतर को उजागर करती है। अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय निगरानी और मॉनिटरिंग कमेटी का गठन अनिवार्य करता है, जिसकी साल में दो बार बैठक होनी चाहिए। हालांकि, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2015 में राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद 13 साल में पहली बार अगस्त 2023 में ऐसी बैठक का नेतृत्व किया। newslaundry
सुरक्षा के लिए स्थापित संस्थागत तंत्र अपर्याप्त और कम उपयोग में है। जबकि 33 जिलों में 37 अनुसूचित जाति/जनजाति सुरक्षा सेल स्थापित किए गए हैं, जो उप पुलिस अधीक्षकों की अध्यक्षता में हैं, अपराधों की निरंतर वृद्धि को देखते हुए उनकी प्रभावशीलता संदिग्ध है। इसके अतिरिक्त, जिला और ब्लॉक स्तरीय समितियां निष्क्रिय बनी हुई हैं, और अधिनियम द्वारा अनिवार्य जिला स्तर पर एक भी जागरूकता केंद्र नहीं खोला गया है। cvmc+1
राज्य की कानूनी सहायता प्रणाली ने 2023 में केवल 315 व्यक्तियों (177 अनुसूचित जाति, 138 अनुसूचित जनजाति) को सहायता प्रदान की, जो दर्ज अपराधों के पैमाने को देखते हुए अपर्याप्त लगता है। इसी तरह, जांच और मुकदमे के दौरान केवल 30 व्यक्तियों को यात्रा और भरण-पोषण खर्च प्रदान किया गया, जो पीड़ित सहायता प्रणालियों में महत्वपूर्ण अंतराल का सुझाव देता है। cvmc
राजस्थान सरकार ने अंततः फरवरी 2024 में राजस्थान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पुनर्वास योजना 2024 को अधिसूचित किया, उच्च न्यायालय के निरंतर दबाव के बाद। अनिवार्य पुनर्वास योजनाओं को लागू करने में यह देरी प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है जो जातिगत हिंसा की निरंतरता में योगदान करती है। timesofindia.indiatimes
आर्थिक निहितार्थ और विकास चुनौतियां
राजस्थान में जातिगत हिंसा के पैमाने का राज्य के आर्थिक विकास और सामाजिक सामंजस्य पर गहरा प्रभाव है। राज्य की जनसंख्या का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा बनाने वाले समुदायों का बहिष्करण और हाशियाकरण मानव संसाधनों और क्षमता की बड़े पैमाने पर बर्बादी का प्रतिनिधित्व करता है। जब जनसंख्या के बड़े हिस्से हिंसा, भेदभाव और गरीबी के चक्रों में फंसे रहते हैं, तो पूरा राज्य कम उत्पादकता, नवाचार और सामाजिक स्थिरता से पीड़ित होता है। newslaundry
दक्षिणी राजस्थान से गुजरात के विकास केंद्रों में आदिवासी प्रवासी श्रमिकों का अतिशोषण दिखाता है कि जातिगत भेदभाव राज्य की सीमाओं से परे फैलता है और क्षेत्रीय आर्थिक गतिशीलता को प्रभावित करता है। प्रवासन प्रवासी परिवारों के लिए कुल घरेलू आय का लगभग 50 प्रतिशत प्रदान करने के बावजूद, आदिवासियों के लिए, रेमिटेंस मुश्किल से बुनियादी उपभोग का समर्थन करते हैं और किसी महत्वपूर्ण पूंजी निर्माण की ओर नहीं ले जाते। aajeevika
भेदभावपूर्ण संरचनाओं को बनाए रखने की आर्थिक लागत प्रत्यक्ष हिंसा से आगे बढ़कर मानव पूंजी में कम निवेश, सीमित सामाजिक गतिशीलता, और हाशिए के समुदायों के बीच निरंतर गरीबी को शामिल करती है। सामंती संरचनाओं का निरंतर प्रभुत्व आधुनिक आर्थिक संबंधों और संस्थानों के विकास को रोकता है जो निरंतर आर्थिक विकास के लिए आवश्यक हैं। neuroquantology
कानूनी ढांचा और प्रवर्तन चुनौतियां
भारत में जातिगत हिंसा को संबोधित करने के लिए कानूनी वास्तुकला, कागज पर व्यापक होने के बावजूद, राजस्थान में महत्वपूर्ण कार्यान्वयन चुनौतियों का सामना करती है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जैसा कि 2015 में संशोधित किया गया, अत्याचार मामलों को संभालने के लिए बढ़ी हुई सजा और विशेष प्रक्रियाओं का प्रावधान करता है। हालांकि, इस कानूनी ढांचे की प्रभावशीलता पुलिस, अभियोजकों और न्यायालयों द्वारा इसके कार्यान्वयन पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर करती है। newslaundry
जांच की गुणवत्ता एक निरंतर समस्या बनी हुई है, जांच पूरी करने और चार्जशीट दाखिल करने का औसत समय महत्वपूर्ण देरी दिखाता है। 2023 में, जबकि 3,835 मामलों की जांच की गई और अनिवार्य साठ दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल की गई, 5,180 मामले इस समयसीमा से अधिक हो गए, जो व्यवस्थित क्षमता बाधाओं को दर्शाता है।cvmc
अत्याचार मामलों की शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई विशेष न्यायालय प्रणाली, राज्य भर में 36 न्यायालय संचालित करती है लेकिन अवसंरचना और मानव संसाधन दोनों के मामले में चुनौतियों का सामना करती है। अभियोजन की गुणवत्ता काफी भिन्न होती है, केवल 9 न्यायालयों में नियमित राज्य अधिवक्ता हैं जबकि 27 सरकारी अभियोजकों पर निर्भर हैं, जो कानूनी प्रतिनिधित्व गुणवत्ता में असंगतियां पैदा करता है। newslaundry+1
अपील प्रणाली भी कमजोरियां दिखाती है, बरी होने पर समाप्त हुए 2,164 मामलों के खिलाफ उच्च न्यायालयों में केवल 75 अपीलें दायर की गईं, जो या तो संसाधनों की कमी या उच्च न्यायालयों में न्याय का पीछा करने की अपर्याप्त प्रतिबद्धता का सुझाव देता है। cvmc
आगे का रास्ता: सिफारिशें और समाधान
राजस्थान में जातिगत हिंसा के संकट को संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो तत्काल कानून और व्यवस्था की चुनौतियों और गहरी संरचनागत समस्याओं दोनों से निपटे। बेहतर पुलिस अधिकारी प्रशिक्षण, सुधारी गई जांच प्रक्रियाओं, और बढ़ी हुई अभियोजन क्षमताओं के माध्यम से आपराधिक न्याय व्यवस्था को मजबूत करना रक्षा की पहली पंक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। newslaundry
निगरानी और मॉनिटरिंग समितियों की नियमित बैठकें आयोजित करने और जिला और ब्लॉक स्तरीय समितियों को सक्रिय करने की राज्य सरकार की प्रतिबद्धता समन्वय और जवाबदेही में काफी सुधार ला सकती है। इसी तरह, अनिवार्य जागरूकता केंद्र स्थापित करना और कानूनी सहायता और पीड़ित सहायता सेवाओं के लिए पर्याप्त फंडिंग सुनिश्चित करना वर्तमान प्रणाली में महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित करेगा। newslaundry
लक्षित कौशल विकास, उद्यमिता समर्थन, और सरकारी अनुबंधों और अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के माध्यम से हाशिए के समुदायों का आर्थिक सशक्तिकरण संघर्ष के कुछ मूल कारणों को संबोधित कर सकता है। राजस्थान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पुनर्वास योजना 2024 का कार्यान्वयन पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए व्यापक सहायता प्रणाली बनाने का अवसर प्रदान करता है। timesofindia.indiatimes+1
संवैधानिक अधिकारों और कानूनी सुरक्षा के बारे में जागरूकता अभियानों सहित शैक्षणिक हस्तक्षेप, अत्याचारों को रोकने और जब वे घटित होते हैं तो रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं। अन्याय को उजागर करने में सोशल मीडिया की भूमिका का लाभ उठाना चाहिए जबकि साथ ही साथ नफरत फैलाने वाली भाषा और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की इसकी क्षमता को संबोधित करना चाहिए। newslaundry
निष्कर्ष: न्याय में देरी, लोकतंत्र से इनकार
राजस्थान में जातिगत हिंसा का संकट, जैसा कि पांच साल में 56,000 से अधिक अपराधों के आंकड़े में कैद है, एक कानून और व्यवस्था की समस्या से कहीं अधिक का प्रतिनिधित्व करता है – यह समानता और सामाजिक न्याय के भारत के संवैधानिक वादे के लिए एक मौलिक चुनौती है। गिरती दोषसिद्धि दरें, निरंतर संस्थागत विफलताएं, और भेदभावपूर्ण प्रथाओं की निरंतर सामाजिक स्वीकृति राज्य में लाखों दलितों और आदिवासियों के लिए कानूनी ढांचे और जीवित वास्तविकताओं के बीच की दूरी को उजागर करती है।
इंद्र मेघवाल, जितेंद्र मेघवाल, और कार्तिक भील की व्यक्तिगत कहानियां शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में काम करती हैं कि हर आंकड़े के पीछे मानवीय पीड़ा, टूटे हुए परिवार, और बिखरे हुए सपने हैं। न्याय के लिए उनके संघर्ष जाति पदानुक्रम और सामंती उत्पीड़न की विरासत से अभी भी जूझ रहे समाज में बुनियादी अधिकारों और गरिमा तक पहुंचने में हाशिए के समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली व्यापक चुनौतियों को दर्शाते हैं। newslaundry
आगे का रास्ता निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति, संस्थागत सुधार, और सामाजिक परिवर्तन की मांग करता है जो विधायी उपायों से आगे बढ़कर भेदभाव को बनाए रखने वाली गहरी सांस्कृतिक और आर्थिक संरचनाओं को संबोधित करे। केवल ऐसे व्यापक प्रयासों के माध्यम से राजस्थान जातिगत हिंसा के चक्र को तोड़ने और एक ऐसे समाज का निर्माण करने की आशा कर सकता है जहां समानता का संवैधानिक वादा सभी नागरिकों के लिए एक जीवित वास्तविकता बन जाए। newslaundry
दांव और अधिक नहीं हो सकते – इस संकट को संबोधित करने में विफलता न केवल हाशिए के समुदायों के लिए अन्याय को कायम रखती है बल्कि लोकतांत्रिक शासन और सामाजिक सामंजस्य की नींव को भी कमजोर करती है जो राज्य की प्रगति और विकास के लिए आवश्यक हैं। नागरिक अधिकार कार्यकर्ता भगवाना राम के अनुसार, दलित युवा अधिक मुखर और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रहे हैं, जो सकारात्मक परिवर्तन के अवसर और संरचनागत मुद्दों के अनसुलझे रहने पर बढ़े संघर्ष की क्षमता दोनों पैदा कर रहा है। राजस्थान के सामने विकल्प स्पष्ट है: वास्तविक सामाजिक परिवर्तन को अपनाना या एक अन्यायपूर्ण और अस्थिर सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने की लागत उठाना जारी रखना।
- https://www.newslaundry.com/2023/11/16/rajasthan-over-56000-caste-crimes-in-5-years-a-shrinking-conviction-rate-shoddy-final-reports
- https://www.youtube.com/watch?v=K3vJKZzxKjY
- https://www.thenewsminute.com/news/ncrb-data-shows-increase-in-crimes-against-scs-and-sts-up-and-rajasthan-on-top
- https://cjp.org.in/up-leads-in-cases-of-atrocities-against-dalits-madhya-pradesh-tops-in-most-crimes-reported-against-sts/
- https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1844972
- https://rajras.in/ras/pre/rajasthan/society/issues/untouchability/
- https://www.cvmc.in/wp-content/uploads/2025/01/2023-SAR-Rajasthan.pdf
- https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/raj-scst-rehab-scheme-framed-state-informs-hc/articleshow/108029047.cms
- https://aajeevika.org/wp-content/uploads/2023/10/Super-exploitation-of-adivasi-migrant-labourers.pdf
- https://www.neuroquantology.com/open-access/UNDERSTANDING+CASTE-BASED+POLITICS+AND+SOCIAL+TRANSFORMATION+IN+RAJASTHAN%253A+INTERPRETING+SHYAMLAL+JAIDIA%25E2%2580%2599S+%2522UNTOLD+STORY+OF+A+BHANGI+VICE-CHANCELLOR%2522+%25282001%2529_13821/?download=true