नित्यानंद नायक का उत्थान और पतन: ओडिशा में भ्रष्टाचार पर एक केस स्टडी
जुलाई 2025 में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर नित्यानंद नायक की गिरफ्तारी ने ओडिशा के वन और भूमि प्रशासन में गहरे पैठे भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया। जिन्हें राज्य की हरित विरासत और आदिवासी समुदायों की रक्षा का जिम्मा सौंपा गया था, उन्होंने अपने व्यक्तिगत हितों के लिए उसी प्रणाली का दुरुपयोग किया और विस्तार से फैली रियल एस्टेट एम्पायर खड़ी कर दी।
वन रेंजर से रियल एस्टेट टाइकून तक
नायक ने 1992 में एक वन रेंजर के रूप में करियर की शुरुआत की और तीन दशकों में निम्नलिखित पदोन्नतियाँ प्राप्त कीं:
- असिस्टेंट कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स (2015–2022)
- डिप्टी कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स, पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) मुख्यालय, भुवनेश्वर
- जनवरी 2024 में केंजु लीफ डिवीजन, क्योनझर के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में जिम्मेदारी संभाली
इस अवधि के दौरान उन्होंने चुपचाप एक विशाल संपत्ति पोर्टफोलियो तैयार किया:
- अंगुल के चलेंदिपाड़ा क्षेत्र में 115 ज़मीन के प्लॉट
- तुरंगा, अंगुल में 9,000 वर्ग फुट का चार-मंजिला टिक-वुड का महल
- चलेंदिपाड़ा में दो फार्महाउस और दो मछली तलाब
- बैंक खातों में छुपाए गए फंड, नकद आरक्षित राशि, सोना और लग्जरी वाहन
- पारंपरिक हथियारों का एक छोटा शस्त्रागार और एक लाइसेंस प्राप्त आग्नेयास्त्र
विगिलेंस छापे और जब्तियाँ
जुलाई 2025 के दो दिनों में ओडिशा विगिलेंस ने नायक से जुड़े सात ठिकानों पर छापेमारी की—उनका आधिकारिक आवास, पैतृक घर, ससुराल और उनके बच्चों के ठिकाने (क्योनझर, अंगुल, नयागढ़ में)। उन्होंने एक वन अधिकारी की आय के अनुरूप न होने वाली संपत्तियाँ जब्त कीं:
- 58 प्लॉट्स नायक के नाम, 43 उनकी पत्नी के नाम, बाकी उनके बच्चों के नाम
- ₹10 लाख से अधिक नकद और 200 ग्राम सोने के आभूषण
- ₹50 लाख से अधिक की फिक्स्ड डिपॉजिट्स
- दो लग्जरी वाहन और दुर्लभ टिक की कलाकृतियाँ
- कम दर पर दर्ज किए गए भूमि पंजीकरण के दस्तावेज़
छापेमारी के कुछ ही घंटों में उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और बैंक रिकॉर्ड, बीमा पॉलिसियाँ व शेल कंपनियों के कारोबार की जांच शुरू हो गई।
भूमि अधिग्रहण योजना की संरचना
जांचकर्ताओं ने दशकों से चल रही एक प्रणालीगत योजना का पता लगाया:
- रणनीतिक खरीद
शुरुआती पोस्टिंग्स में दो प्लॉट (1992–2006) ही खरीदे गए। 2007 से दर्जे बढ़ने के साथ ही खरीदी की रफ्तार भी बढ़ी—रेंजर रहते 64 प्लॉट, असिस्टेंट कंजरवेटर रहते 39, और हर प्रमोशन के बाद नई संपत्ति जोड़ी गई। - अंडरवैल्यूएशन और शेल पंजीकरण
बिक्री-पत्रों में कुल लेनदेन मूल्य लगभग ₹2.5 करोड़ दिखाया गया, जबकि असली मार्केट वैल्यू ₹10 करोड़ से अधिक अनुमानित है। प्लॉट्स को परिवार के सदस्यों के नाम पर रजिस्टर्ड किया गया ताकि असली मालिकाना हक छुपाया जा सके। - वन संसाधनों का दुरुपयोग
कोयला समृद्ध अंगुल में सर्वे, लकड़ी व क्षतिपूर्ति संबंधी जानकारी का इस्तेमाल संपत्ति के दाम बढ़ाने और गबन की धनराशि को लॉन्ड्रिंग करने में किया गया।
प्रणालीगत कमजोरियाँ और सबक
नायक का मामला ओडिशा की सरकारी सेवाओं में फैली खामियों को दिखाता है:
- विभागों के बीच समन्वय का अभाव, जिससे संपत्ति घोषणा का आपसी मिलान नहीं हो पाता
- सिर्फ नियुक्ति या पदोन्नति पर संपत्ति खुलासा अनिवार्य, लंबे कार्यकाल में अतिरिक्त संपत्तियाँ अचेतन रहते
- स्थानीय समुदाय और मीडिया के सामने रिकॉर्ड की पारदर्शिता न के बराबर
ओडिशा को चाहिए:
- सभी अधिकारियों के लिए वार्षिक ऑनलाइन संपत्ति फाइलिंग, साथ में ऑडिट ट्रेल
- डिजिटल लेजर-आधारित एकीकृत भूमि-पंजीकरण प्रणाली
- नागरिक मंचों को शक्ति देना और आसान RTI प्रक्रिया
ओडिशा के शासन पर व्यापक प्रभाव
नायक का पतन न केवल जनता में आक्रोश पैदा कर गया, बल्कि प्रशासन में भी आत्म-अवलोकन की लहर लेकर आया। यह दिखाता है कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और अधिकारियों को जिम्मेदारी देने के बीच संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है। जैसे-जैसे ओडिशा औद्योगिक और आधारभूत संरचना के विकास की ओर बढ़ रहा है, भविष्य में ऐसे ही घोटालों को रोकने के लिए कड़े तंत्र लागू करना अनिवार्य होगा।
निष्कर्ष
नित्यानंद नायक का मामला चुनावी या सनसनीखेज काण्ड भर नहीं है, बल्कि यह संस्थागत खामियों का उदाहरण है, जिसने एक वन रक्षक को संपत्ति साम्राज्य का स्वामी बना दिया। ओडिशा का अगला कदम पारदर्शिता और तकनीक को शासन ताने-बाने में पिरोना होना चाहिए, ताकि सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग फिर कभी निजी लाभ का साधन न बने।