भारतीय न्यायपालिका में ‘अंकल जज सिस्टम’: न्याय में पक्षपात की चुनौती
भारतीय न्यायपालिका को लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में, न्यायिक प्रणाली को लेकर कई विवाद उठे हैं, जिनमें से एक सबसे बड़ा मुद्दा है – ‘अंकल जज सिस्टम’ (Uncle Judge System)। यह प्रणाली न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद, पक्षपात और पूर्वाग्रह को दर्शाती है, जिससे न्याय की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
इस लेख में हम ‘अंकल जज सिस्टम’ की अवधारणा, उसके प्रभाव, न्यायपालिका में पारदर्शिता की कमी, और इसे रोकने के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
‘अंकल जज सिस्टम’ क्या है?
‘अंकल जज सिस्टम’ भारतीय न्यायपालिका में व्याप्त एक अनौपचारिक प्रथा है, जिसमें कुछ न्यायाधीश अपने परिवार, रिश्तेदारों, या करीबी लोगों के हित में फैसले सुनाते हैं या उन्हें विशेष सुविधाएं देते हैं। विशेष रूप से उच्च न्यायालयों में, जहां न्यायाधीशों की नियुक्ति एक बंद प्रक्रिया के तहत होती है, यह समस्या अधिक गंभीर होती है।
इस प्रणाली के तहत:
- न्यायाधीश अपने परिवार के वकीलों को बढ़ावा देते हैं।
- रिश्तेदारों के केसों में पक्षपातपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं।
- कुछ वकीलों को अनुचित लाभ मिलता है, जिससे अन्य योग्य वकीलों के अवसर कम हो जाते हैं।
- योग्यता की बजाय संबंधों के आधार पर पदोन्नति और नियुक्ति होती है।
इस प्रणाली के कारण न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है और जनता का विश्वास कमजोर हो सकता है।
भारतीय न्यायपालिका में ‘अंकल जज सिस्टम’ का इतिहास
भारतीय न्यायपालिका में ‘अंकल जज सिस्टम’ कोई नई समस्या नहीं है। लंबे समय से न्यायपालिका पर भाई-भतीजावाद और अंदरूनी नेटवर्क के आरोप लगते रहे हैं।
- 1980 और 1990 के दशक में, जब कोलेजियम सिस्टम (Collegium System) प्रभावी हुआ, तब न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदोन्नति का पूरा अधिकार स्वयं न्यायपालिका के हाथ में आ गया।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी ने ‘अंकल जज’ संस्कृति को बढ़ावा दिया।
- कई मामलों में, उच्च न्यायालयों में नियुक्त न्यायाधीशों के बेटे, भतीजे, भांजे, या दामाद उसी अदालत में वकील बने और उन्हें लाभ मिलने लगा।
अंकल जज सिस्टम के प्रभाव
1. न्यायिक निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह
अगर एक जज अपने किसी करीबी रिश्तेदार के केस में फैसला देता है, तो इससे न्याय की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न होता है। लोगों को लग सकता है कि फैसला पहले से तय था और कानून का गलत इस्तेमाल हुआ है।
2. प्रतिभाशाली वकीलों के लिए अवसरों की कमी
जब एक न्यायाधीश अपने रिश्तेदार या करीबी वकीलों को विशेष महत्व देता है, तो इससे योग्य लेकिन साधारण पृष्ठभूमि के वकीलों के अवसर कम हो जाते हैं। इससे न्यायपालिका में असमानता बढ़ती है।
3. न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर असर
अगर जनता को यह लगने लगे कि न्यायपालिका पक्षपाती है और केवल एक खास वर्ग को लाभ मिलता है, तो लोगों का कानून पर भरोसा कम हो जाता है।
4. भ्रष्टाचार को बढ़ावा
जब रिश्तेदारी और संबंधों के आधार पर फैसले दिए जाते हैं, तो इससे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। कई बार गलत तरीके से लाभ उठाने के लिए पैसा और राजनीतिक दबाव भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
5. योग्यता की अनदेखी और भाई-भतीजावाद
इस प्रणाली के कारण कई बार योग्य वकीलों और न्यायाधीशों की अनदेखी होती है, और सिर्फ संबंधों के आधार पर लोगों को न्यायाधीश बना दिया जाता है।
भारतीय न्यायपालिका में ‘अंकल जज सिस्टम’ के उदाहरण
हाल के वर्षों में, कई मामले सामने आए हैं जहां न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद और ‘अंकल जज सिस्टम’ के प्रमाण मिले हैं।
- कुछ उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिश्तेदारों का वकालत में दबदबा
- कई न्यायाधीशों के बेटे, भतीजे और अन्य रिश्तेदार उन्हीं अदालतों में प्रभावशाली वकील बन जाते हैं, जहां उनके परिजन न्यायाधीश होते हैं।
- इन वकीलों को प्रमुख मामलों में प्राथमिकता दी जाती है।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वयं स्वीकार किया गया पक्षपात
- सुप्रीम कोर्ट ने कई बार टिप्पणी की है कि कुछ न्यायाधीश अपने रिश्तेदारों के लिए विशेष लाभ की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं।
- जस्टिस मार्कंडेय काटजू जैसे पूर्व न्यायाधीशों ने खुले तौर पर न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद की आलोचना की थी।
- कुछ न्यायाधीशों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप
- न्यायपालिका में कुछ न्यायाधीशों पर रिश्वतखोरी और पक्षपात के गंभीर आरोप भी लग चुके हैं।
- हालांकि, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गोपनीयता के कारण इस पर कड़ी कार्रवाई मुश्किल हो जाती है।
‘अंकल जज सिस्टम’ को खत्म करने के उपाय
1. न्यायाधीशों की पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया
- न्यायाधीशों की नियुक्ति कोलेजियम सिस्टम से हटाकर एक स्वतंत्र आयोग (NJAC) के माध्यम से करने की आवश्यकता है।
- हर नियुक्ति की सार्वजनिक समीक्षा होनी चाहिए ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
2. न्यायाधीशों पर कड़े आचार संहिता लागू करना
- सभी न्यायाधीशों को यह घोषित करना चाहिए कि उनका कोई करीबी रिश्तेदार उसी अदालत में वकालत नहीं करेगा।
- अगर कोई मामला उनके किसी रिश्तेदार से संबंधित हो, तो उन्हें स्वयं उस केस से अलग हो जाना चाहिए।
3. न्यायपालिका में स्वतंत्र निरीक्षण प्रणाली
- एक स्वतंत्र निरीक्षण प्रणाली बनाई जानी चाहिए जो न्यायाधीशों के कार्यों की जांच करे और यह देखे कि कहीं पक्षपात तो नहीं हो रहा।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखते हुए, एक न्यायिक लोकपाल या निगरानी समिति होनी चाहिए।
4. वकीलों और न्यायाधीशों के लिए निष्पक्षता प्रशिक्षण
- वकीलों और न्यायाधीशों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वे भाई-भतीजावाद से दूर रहें।
5. मीडिया और सिविल सोसाइटी की भूमिका
- मीडिया और नागरिक समाज को न्यायपालिका की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना होगा।
निष्कर्ष
भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता और निष्पक्षता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। ‘अंकल जज सिस्टम’ न केवल न्याय की धारणा को कमजोर करता है, बल्कि जनता का कानून और संविधान में विश्वास भी कम करता है।
जब तक न्यायपालिका में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक न्याय की सही अवधारणा को साकार नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका को अपनी निष्पक्षता बनाए रखने के लिए खुद ही सुधार की दिशा में कदम उठाने होंगे, ताकि आम जनता का विश्वास इस महत्वपूर्ण स्तंभ में बना रहे।