महाकुंभ के दौरान गंगा नदी: आस्था और प्रदूषण की चुनौती
भूमिका
गंगा नदी भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का प्रमुख केंद्र है। हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला गंगा तट पर करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जो आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में गंगा नदी की स्वच्छता और जल गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न उठे हैं, विशेषकर महाकुंभ जैसे विशाल आयोजनों के दौरान।
गंगा जल की गुणवत्ता पर सीपीसीबी की रिपोर्ट
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने महाकुंभ 2025 के दौरान गंगा और यमुना नदियों के जल की गुणवत्ता पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान गंगा के पानी में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक पाया गया, जिससे जल स्नान के लिए उपयुक्त नहीं रहा। विशेष रूप से, संगम क्षेत्र में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा प्रति 100 मिलीलीटर में 49,000 MPN तक दर्ज की गई, जबकि स्वीकार्य सीमा 2,500 MPN प्रति 100 मिलीलीटर है।
प्रदूषण के संभावित कारण
महाकुंभ के दौरान गंगा में प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं:
- श्रद्धालुओं की भारी भीड़: करोड़ों लोग गंगा में स्नान करते हैं, जिससे मानव अपशिष्ट और अन्य प्रदूषकों की मात्रा बढ़ती है।
- अपर्याप्त सीवेज प्रबंधन: कई स्थानों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की कमी या उनकी अपर्याप्त क्षमता के कारण अनुपचारित सीवेज सीधे नदी में प्रवाहित होता है।
- औद्योगिक अपशिष्ट: नदी के किनारे स्थित उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट भी जल प्रदूषण में योगदान करते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रदूषित गंगा जल में स्नान करने से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं:
- त्वचा रोग: प्रदूषित जल के संपर्क में आने से खुजली, चर्म रोग और अन्य त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
- पेट संबंधी बीमारियां: फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के कारण दस्त, उल्टी और पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
- आंखों में संक्रमण: प्रदूषित जल से आंखों में जलन और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
सरकारी प्रयास और चुनौतियां
गंगा की स्वच्छता के लिए सरकार ने “नमामि गंगे” जैसी योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाना है। हालांकि, महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों के दौरान इन प्रयासों को विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- अस्थायी संरचनाओं का निर्माण: मेले के दौरान अस्थायी शौचालयों और सीवेज ट्रीटमेंट सुविधाओं की स्थापना की जाती है, लेकिन भारी भीड़ के कारण ये अक्सर अपर्याप्त साबित होती हैं।
- जन जागरूकता की कमी: श्रद्धालुओं में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी भी प्रदूषण बढ़ने का एक कारण है।
निष्कर्ष
महाकुंभ भारतीय संस्कृति और आस्था का महत्वपूर्ण पर्व है, लेकिन इसके साथ ही गंगा की स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी भी हमारे ऊपर है। सरकार, समाज और श्रद्धालुओं को मिलकर ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे आस्था और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित हो सके, ताकि गंगा की पवित्रता और स्वच्छता बनी रहे।